As you all know the conversation of Shikhar and his beloved one in previous poem, this time they meet after four years. Now Shikhar is married. He is happy with his wife and a cute daughter. Shikhar explains her that life without you is not so bad, as he had thought it to be.
Here it goes........
तेरे जाने के बाद कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा . वक़्त बदला , दुनिया बदली और मै भी बदल गया . सच कहूँ , बहुत कुछ जाना है तेरे जाने के बाद .
(Small family is special....)
तुमसे मिल कर जाना था क्या होता है संसार
समय साथ बिताकर समझ पाया था प्यार ,
पर क्या होता है एक नवोदित परिवार
ये जाना तेरे जाने के बाद .
(Wife respects my mom.......)
तुने ही बनाया था इस जीवन को प्रणय -गान
तुने ही बताया था क्या है सपनो का सत्कार ,
रीति रिवाज़ सब बुन डाले थे गिन डाले थे
पर क्यूँ करती है वो मेरी माँ का सम्मान ,
ये जाना तेरे जाने के बाद .
(Language of a kid...........)
नयनो की भाषा तो तुमने ही सिखाई थी
निः -शब्द होकर गीत की झंकार सुनाई थी ,
कोई और भाषा न संकेत मै जानता था
पर कैसे समझ लेता हूँ वो तोतली जुबां ,
ये जाना तेरे जाने के बाद .
(While coming to home in the evening, how I remember the gift for my daughter.....)
उन वादों में जो शक्ति थी , वो कहीं और नहीं
उन कसमों में जो हठ थी , जिद्द थी , वो कहीं और नहीं
अब वादे तो बस बातें लगते हैं
खोखली इक्षा के धागे लगते हैं
पर क्यूँ याद रहती है नन्ही पारी की किताब ,
ये जाना तेरे जाने के बाद .
(How my wife manages home........)
वो जो रिश्ता जोड़ा था तुझसे , अटूट था
स्वप्न धूमिल था पर लेशमात्र भी न झूठ था ,
हमने मिल कर बांधे थे जन्म मरण के धागे
पर कैसे बांधती है वो धैर्य व सामंजस्य की गाँठ
ये जाना तेरे जाने के बाद .
So, the life moves on and we find new happiness at each and every step... No need to say- "एक साँस ही तो है लेनी ले लूँगा ..." or "कैसे कहूँ मुझसे मेरी दुनिया छूटीहै ...."
Dialogues of the Girl..? Next time..!!!!!!
Thursday, August 27, 2009
कैसे कहूँ
This time the topic of poetry is the separation of a couple and arrange marriage of the girl with a guy, suggested by father as usual.
शिखा --
कैसे कहूँ कि आज तुझे भुलाया है
कैसे कहूँ कि आज खुद को झुठलाया है
कैसे कहूँ कि वो वादे तो सच थे , पर ये दुनिया झूठी है
कैसे कहूँ कि आज मुझसे मेरी दुनिया छूटी है.
कैसे कहूँ कि अब ये जीवन किसी और का है,
लकीरें तो तेरी हैं पर ये हाथ किसी और का है
माँ कि ममता का मोल आज चुकाया है
पिता के सम्मान को सम्मान दिलाया है
भूल जाऊँगी कि यहाँ भी एक ह्रदय था
जिसमें भी था सम्मान और प्रेम अश्रु विलय था
कैसे कहूँ कि एक नया परिवार तो पाया है ,
पर सपनों का अपना संसार गंवाया है
कैसे कहूँ कि आज तुझे भुलाया है .
शिखर --
सच झूठ नहीं है कुछ भी ये सब जीवन कि माया है ,
लकीरों का ही तो खेल है पगली , जीवन तो उसकी छाया है .
कभी मिलो जीवन में फिर से , तो रास्ते बदल देना
जो बीत गया वो अच्छा था , उन किस्सों को न कोई शकल देना .
मेरा भी जीवन है , अभी कई काम हैं बाकी
परंपरा मेरी भी साथी , छुटकी है अभी बाकी .
जीवन जीना ही तो है किसी तरह जी लूँगा ,
हर पल एक साँस ही तो है लेनी , कोशिश करूँगा ले लूँगा
कैसे कहूँ नीरसता को निज आधार बनाया है ,
कैसे कहूँ कि आज तुझे भुलाया है .
माँ ,सब जानते हुए --
जन्म दिया मैंने पर तुझको संसार न तेरा दे पायी
डोली में हर खुशियाँ दी हैं , श्रृंगार न तेरा दे पाई .
उस दिन आंसू थे डोली में तेरी , जो मोती बन कर बह गए
संसार मूर्ख होगा रे पगली , मैंने जन्म दिया है तुझको ,
वे व्यथा -दूत बन कर तम में , मुझसे ही सब कह गए .
कैसे कहूँ विवशता को अवलंब बनाया है ,
कैसे कहूँ मैंने भी अब तुझे भुलाया है .
शिखा --
कैसे कहूँ कि आज तुझे भुलाया है
कैसे कहूँ कि आज खुद को झुठलाया है
कैसे कहूँ कि वो वादे तो सच थे , पर ये दुनिया झूठी है
कैसे कहूँ कि आज मुझसे मेरी दुनिया छूटी है.
कैसे कहूँ कि अब ये जीवन किसी और का है,
लकीरें तो तेरी हैं पर ये हाथ किसी और का है
माँ कि ममता का मोल आज चुकाया है
पिता के सम्मान को सम्मान दिलाया है
भूल जाऊँगी कि यहाँ भी एक ह्रदय था
जिसमें भी था सम्मान और प्रेम अश्रु विलय था
कैसे कहूँ कि एक नया परिवार तो पाया है ,
पर सपनों का अपना संसार गंवाया है
कैसे कहूँ कि आज तुझे भुलाया है .
शिखर --
सच झूठ नहीं है कुछ भी ये सब जीवन कि माया है ,
लकीरों का ही तो खेल है पगली , जीवन तो उसकी छाया है .
कभी मिलो जीवन में फिर से , तो रास्ते बदल देना
जो बीत गया वो अच्छा था , उन किस्सों को न कोई शकल देना .
मेरा भी जीवन है , अभी कई काम हैं बाकी
परंपरा मेरी भी साथी , छुटकी है अभी बाकी .
जीवन जीना ही तो है किसी तरह जी लूँगा ,
हर पल एक साँस ही तो है लेनी , कोशिश करूँगा ले लूँगा
कैसे कहूँ नीरसता को निज आधार बनाया है ,
कैसे कहूँ कि आज तुझे भुलाया है .
माँ ,सब जानते हुए --
जन्म दिया मैंने पर तुझको संसार न तेरा दे पायी
डोली में हर खुशियाँ दी हैं , श्रृंगार न तेरा दे पाई .
उस दिन आंसू थे डोली में तेरी , जो मोती बन कर बह गए
संसार मूर्ख होगा रे पगली , मैंने जन्म दिया है तुझको ,
वे व्यथा -दूत बन कर तम में , मुझसे ही सब कह गए .
कैसे कहूँ विवशता को अवलंब बनाया है ,
कैसे कहूँ मैंने भी अब तुझे भुलाया है .
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