Thursday, August 27, 2009

कैसे कहूँ

This time the topic of poetry is the separation of a couple and arrange marriage of the girl with a guy, suggested by father as usual.


शिखा --

कैसे कहूँ कि आज तुझे भुलाया है
कैसे कहूँ कि आज खुद को झुठलाया है
कैसे कहूँ कि वो वादे तो सच थे , पर ये दुनिया झूठी है
कैसे कहूँ कि आज मुझसे मेरी दुनिया छूटी है.


कैसे कहूँ कि अब ये जीवन किसी और का है,
लकीरें तो तेरी हैं पर ये हाथ किसी और का है
माँ कि ममता का मोल आज चुकाया है
पिता के सम्मान को सम्मान दिलाया है
भूल जाऊँगी कि यहाँ भी एक ह्रदय था
जिसमें भी था सम्मान और प्रेम अश्रु विलय था
कैसे कहूँ कि एक नया परिवार तो पाया है ,
पर सपनों का अपना संसार गंवाया है
कैसे कहूँ कि आज तुझे भुलाया है .


शिखर --

सच झूठ नहीं है कुछ भी ये सब जीवन कि माया है ,
लकीरों का ही तो खेल है पगली , जीवन तो उसकी छाया है .
कभी मिलो जीवन में फिर से , तो रास्ते बदल देना
जो बीत गया वो अच्छा था , उन किस्सों को न कोई शकल देना .
मेरा भी जीवन है , अभी कई काम हैं बाकी
परंपरा मेरी भी साथी , छुटकी है अभी बाकी .
जीवन जीना ही तो है किसी तरह जी लूँगा ,
हर पल एक साँस ही तो है लेनी , कोशिश करूँगा ले लूँगा
कैसे कहूँ नीरसता को निज आधार बनाया है ,
कैसे कहूँ कि आज तुझे भुलाया है .


माँ ,सब जानते हुए --
जन्म दिया मैंने पर तुझको संसार न तेरा दे पायी
डोली में हर खुशियाँ दी हैं , श्रृंगार न तेरा दे पाई .
उस दिन आंसू थे डोली में तेरी , जो मोती बन कर बह गए
संसार मूर्ख होगा रे पगली , मैंने जन्म दिया है तुझको ,
वे व्यथा -दूत बन कर तम में , मुझसे ही सब कह गए .
कैसे कहूँ विवशता को अवलंब बनाया है ,
कैसे कहूँ मैंने भी अब तुझे भुलाया है .

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