Monday, September 14, 2009

उस पल तुम्हारी याद आई ....

First of all thanks a lot for your appreciation for my previous posts. Please write comments, whether in a negative shade or a positive one. It gives chance as well as encouragement to improve my writings.

Shikha is also married now. She tells about her life. Shikhar asks her that now you are not that much bubbly kind of Girl whom I had left. Where is that 'Chanchala'??

Shikha--

चार कन्धों पर सजी उस दिन जो परिणय -यात्रा थी ,
शव 'चंचला' का डोली में था , वह उसकी अंतिम -यात्रा थी .
शहनाई -नगाड़ों ने इक पल के लिए सब भुला दिया था ,
पर जब रंग -हीन शव -राख ने लाल सिन्दूर की शकल थी पाई ,
उस पल तुम्हारी याद आई .

निश्चय ही कुछ कमी रही है , मेरे व्रत में -तप में
तभी आज ये दुर्भाग्य है मेरे संग .
कहाँ है वो पाषाण , जो सकल जग का आधार है और उनका अवलंब .
प्रसाद भी ठुकरा दिया था , उपहार भी ठुकरा दिया था ,
पर जब उस 'अक्षत -कलश ' को ठोकर लगायी ,
उस पल तुम्हारी याद आई .



वे झूठ कहते हैं की नारी सैय्यम्शील होती है ,
विधाता है नचाता सबको और काया मजबूर होती है .
धर्म के विपरीत जा रही थी मै , मन में पर -पुरुष का भाव था ,
चेहरे पर स्पष्ट परिलक्षित था , ह्रदय का जो घाव था .
पर जब उन्होंने मौन रह कर मुझसे प्रतिउत्तर की आस लगाइ ,
उस पल तुम्हारी याद आई .


माना मनन के विपरीत चलने में जीवन बड़ा ही विरल है ,
किन्तु विधाता ने 'समय -चक्र ' दिया है ,जो हर प्रभाव का हल है .
समय बीता और जीवन में एक विचित्र नवीनता आई ,
मैंने जन्म दिया 'कान्हा ' को और मैं पूर्ण स्त्री कहलाई .
माँ अपने ही इक अंश के लिए , असीम पीड़ा है सहती ,
शायद यही वजह है , दुनिया माँ को 'भगवत -रूप' है कहती .
जब मेरे ही उस अंश ने मुझे , 'माँ ' की आवाज़ लगायी ,
उस पल जीवन में सुखद नवीनता छाई .


शिखर --

कल 'चंचला' थी , आज घर में भार्या है ,
कल तक आगे की चिंता थी , अब आज में उलझी हुई है .
कहानी यह कोई नयी नहीं , कल फिर कहीं दोहराई जाएगी
फिर किसी की शव - राख , सिन्दूर बन ,मांग में सजाई जाएगी .
कल फिर किसी शिखर से , कोई शिखा छूट जाएगी .
फिर 'शिखर ' तो बस नाम का होगा , आत्मीयता तो टूट जाएगी .
बस कुछ लिखता रहूँगा , बनता रहूँगा लकीरों जैसा ,
विधि के आगे तो मनु -पुत्र भटकता रहा है फकीरों जैसा .
इस कविता के पाठक ने जब जब अपनी पलकें झपकाई ,
उस पल तुम्हारी याद आई ....

4 comments:

  1. Nice one !!!!!!!!!!! Keep it up !

    ReplyDelete
  2. Can I please borrow ur thought process??

    ReplyDelete
  3. Hey, u give this blog an "amazing life"...all the time i wz reading ur posts i was very badly hating the fact shikha n shikhar always have to go their own separate ways...u gave me an upset moment sir!...I am nowhere near to you..u r at ur poetic best, is all i can say..Gr8!

    ReplyDelete
  4. kaese bayaan karu aapki is mahanta ko,kaese bayan karun sikhar ki is kahani ko,hm to iske tinko k barabar b nahi,ab kya kahun is lajawab kahani ko......................god bless you.........now i become the fan of you............really.......................

    ReplyDelete