Monday, October 5, 2009

थकान ...

As most of us are away from our homes and families chasing the aims, Sometimes we get tired and we ask ourselves that why we are walking with bleary eyes now, when the decision was wholly ours to leave our homes......

आज क्यूँ थका थका जब स्वयं ही चुना था पथ
कल को सवारने कल चल दिया था
स्वजन की कोमल भावना को कल यहीं आहत किया था
जय के सारे साधन बटोरने
निज कर से दुनिया टटोलने , कल चल दिया था
आदि में एकांत था अब उस मेले में आ घिरा हूँ
परिचय है जहाँ पर पद से धन से ,उस उत्सव का हिस्सा बना हूँ
शिखर मन क्यूँ डोलता है , जब स्वयं ही ली थी शपथ .
आज क्यूँ थका थका जब स्वयं ही चुना था पथ


I still remember one of my classmates, who wanted to do MCA, but she couldn't. Reason being financial problems. Next stanza is dedicated to her....


आज क्यूँ पीछे जाने की चाहत है मन में ,
उन लोगों से मिल कर आने की चाहत है मनन में
जी चाहता है उन्हें भी साथ खींच लूँ
उन्हें भी दुनिया दिखाऊँ ...
जो गुण यहाँ सब में है , उसमे भी था ..
जो उत्साह यहाँ सब में है , उस में भी था ,
वो विशवास जल का बुलबुला था , जो उसे एक दिन खोना ही था ,
किस जीत से प्रसन्न थी कल , जब आज उसे रोना ही था
जो हमारा पेट भरता है , वह इसी देश का किसान है ,
मै जिसकी बात कर रहा हूँ वो इसी गरीब की संतान है .
आज कैसा प्रसन्न -चित्त जब मन में रह गयी कसक
आज क्यूँ थका थका जब स्वयं ही चुना था पथ.......

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