As all my previous posts were in sad mood, this time I tried 'श्रृगार -रस'.....
आज तुम साथ हो और मेरा चाँद पूरा है
तन मन वार दूं इस पल पर तेरे मन पर
जैसे पत्ते पर टिकी एक सुबह कि ओस हूँ मै
जब तक तू आधार है , सजल और ठोस हूँ मै
पूर्ण सूर्य बिम्बित है मुझमे अब , हाँ मुझे ये अहंकार है
सुहागन को ही पूर्ण कहते है यहाँ ए बूँद , यही तो संसार है
तुम बिन मेरा अहम् , बिम्ब व आधार अधूरा है ,
आज तुम साथ हो और मेरा चाँद पूरा है .
ये मंद हवा , ये निशा , ये ठहरा हुआ पल और तुम ,
स्तब्ध सासें , रुकी धड़कन , सिमटती दूरियां और तुम
आज जो छू ले इस मन को , जोगन बन जाए सुहागन
फिर ये भी स्वीकार है कि फिरूं आजीवन बनकर बिरहन
तेरी प्रीत कि भाषा से लिखा आज मेरा धर्म , ग्रन्थ और अर्थ है
यदि इश्वर विश्वास है तो वो तू ही है ,शेष भगवा , व्रत , पूजा तो व्यर्थ है
तेरा नाम जब पुकारूँ तो लगे अब भजन वो पूरा है ,
आज तुम साथ हो और मेरा चाँद पूरा है .
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